Skip to main content

24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जगा रहे जागरूकता।

24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जगा रहे जागरूकता।
24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जगा रहे जागरूकता। 

24 बरस पहले की बात हैं। डॉ. हरशिंदर कौर और डॉ. गुरपाल सिंह पंजाब और हरियाणा की बॉर्डर पर ग्रामीण इलाके में एक कैंप आयोजित करने जा रहे थे।  इसका मकसद था ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करना। इस तरह के कैंप वे अक्सर आयोजित करते थे। तभी उन्होंने एक इलाके में देखा कि कुत्ते जमीन से कुछ खींचकर बहार लाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने उस तरफ देखा तो हड्डियों के ढेर के बीच एक नवजात मृत थी। इस घटना से आहात दम्पति ने जब ग्रामीणों से इस बारे में पूछताछ की तो ग्रामीणों ने बहुत सहजता से बताया कि किसी गरीब परिवार में कन्या का जन्म हुआ होगा जिसे बेटी की चाह नहीं होगी। यह सुनकर दम्पति चौंक गए। यही वह निर्णायक पल था जबकि उन्होंने गांव-गांव कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जागरूकता जगाने का निर्णय ले लिया। 



पंजाब के एक डॉक्टर दंपत्ति पिछले 24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के
खिलाफ लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं।
इस दंपत्ति ने बच्चियों को सशक्त बनाने के अन्य
काम भी किये हैं। 

दम्पति ने महसूस  किया कि गांव वालो को अगर चैतन्य किया जाये तो वे लड़कियों के अधिकारों की रक्षा  लिए आगे आ सकते हैं।  तब 1994 में प्री-कान्सेप्शन एंड प्री-नेटल टेक्निक एक्ट (पीसीपीएनडीटी ) पारित हो चुका था , लेकिन पंजाब और हरियाणा में भ्रूण हत्या के कई मामले देखने में आ रहे थे। वर्ष 1996-1998 के बीच पंजाब में लिंग चयन के आधार 51 हज़ार गर्भपात हुए थे और हरियाणा में 62 हज़ार। डॉ. कौर कहती हैं कि अल्ट्रासॉउन्ड के जरिये लिंग का पता लगाना और इस आधार पर गर्भपात कराने का चलन हमारे देश में तब बहुत ज्यादा था। भले  ही तब इसके खिलाफ कानून  बन गया था। हमने लोगो में जागरूकता लाकर ही इस स्थिति को बदलने का ठाना। लड़कियों की उपेक्षा के दौर में जिन घरों में  लड़कियों का जन्म होता था, वहां भी समुचित अधिकार नहीं मिल पते थे। लड़कियों को निःशुल्क टीकाकरण के लिए नहीं लाया जाता था, उन्हें पोषक आहार नहीं दिया जाता था और बीमार होने पर उनका ठीक से उपचार भी नहीं कराया जाता था। हमने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। 

Indeed-rojgar
24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जगा रहे जागरूकता। 

इस दम्पति का अनुभव है कि कन्या का जन्म होने पर माँ को ही दोषी ठहराया जाता था जबकि कन्या का जन्म होना प्रकृति का अपना चयन था। इसमें किसी भी माँ का कोई दोष नहीं, लेकिन लोगो के बीच जागरूकता का आभाव था। डॉ. कौर ने तय किया कि वे इस मुद्दे को जड़ से पकड़ेगीं और लोगो को समझाएंगी कि लड़की पैदा होने में माँ का दोष नहीं हैं। जब भी वे और उनके पति गांव में कैंप लगाने के लिए जाते तो वे गांववालों को इकठ्ठा करके इस तरह के विषयों पर बात करते थे। कौर कहती हैं, "मैंने पटियाला के निकट के एक गांव पर फोकस किया और यहाँ 5 साल काम किया। मैंने अपनी जानकारियां गांववालों के साथ साझा की। लोगो को बात समझ आई, तर्क समझ आये तो यहाँ बदलाव आया। कभी यहाँ लिंगानुपात 845/1000 था तो यह पांच वर्षों में किए गए कामों के बाद 1013/1000 हो गया। "

 
Indeed-rojgar
24 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जगा रहे जागरूकता। 


डॉ. कौर का काम मुश्किल जरूर था क्योंकि लोगो के मन में सदियों से जमी बेटे की कामना के सामने बेटियों को स्वीकार करने की सीख देना आसान नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार प्रयास किये।  वह कहती हैं कि मैंने उन्हें कानून की जानकारी दी और बताया कि किस तरह कोख में शिशु आता हैं। इसमें स्त्री और पुरुष की भूमिका क्या होती हैं। जानकारी के साथ ही इस बुराई से लड़ा जा सकता था। मैंने लोगो में ही कन्या संतान के प्रति स्वीकार का भाव पैदा किया। यह सबसे जरुरी था। आज तो स्थिति में बहुत सुधार आ गया हैं। लेकिन आज से 25 बरस पहले स्थिति बहुत ज्यादा ख़राब थी। तब लोग खुद ही बताते थे कि उन्होंने कन्या संतान को दफनाया हैं। आज लोग बेटियों को स्वीकार रहे हैं। 
ऐसे नहीं हैं कि यह काम बहुत आसान था, बल्कि इसमें कई मुश्किलें भी थी। उनके कुछ साथी डॉक्टर्स ने भी उनसे कहा कि उन्हें इस मुद्दे के साथ खुद को बहुत ज्यादा जोड़ने की क्या जरुरत हैं। एक मौके पर तो वह जिस अस्पताल में काम करती थी वहां से उनसे इसलिए जाने को कहा गया क्योकि वे इस मुद्दे में कुछ ज्यादा ही रूचि ले रही थी। मगर अस्पताल को जल्दी ही अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने डॉ. कौर को स्टाफ का हिस्सा फिर से बना लिया। 

Comments